सुखी जिवन का रहस्य  अगर आप ईस सबाल का जबाब चाहते है। तो आपको ईसे पढना चाहिये जिवन बहुत लम्बा होता अगर उसके सत्य को स्वीकार लीया जाए जिवन क्षन भर मे बित जाता है।  ईस पोस्ट को पढ कर ईसका महत्ब समझ मे आ जायगा आपको पता चलेगा कि जिवन का  अमुल्य ग्याण भी कभी कभी छोट से साघारण ईंसान से मिल जाता है। कभी कभी छोटे मुलाकात भी जिवन को बदल देता है। ग्याण होकर भी हमे कुछ पता नही चलता  सुखी जिवन का रहस्य एक महान सांत हुआ करते थे जो स्वय का आक्षम बनना चाहते थे जिसके लिय वो कई लोगो से मुलाकात करते थे एक जगह से दुसरे जगह जाना पडता था ईसी यात्रा के दोरान एक कन्या बिदुषी से हुई विदूषी ने उनका स्वागत किया और संत से कुछ समय रूक कर आराम करने का आगरा किया संत उनके मिठे बोल बिचार से रूकने का निर्नय लिया  विदुषि ने अपने हाथो का स्वादिस्ट भोजन कराया और उनके अराम करने का बेबस्ता किया खटियाँ पर दरी बिछाया और अपने जमिन पर चटाई बिछा कर शो गई विदुषी को सोते हि निंद आ गईऋ

Jai Jai Ram Katha Lyrics in Hindi? जय जय राम कथा लिरिक्स इन हिंदी

 Jai Jai Ram Katha Lyrics in Hindi? जय जय राम कथा लिरिक्स इन हिंदी


Jai Jai Ram Katha Lyrics in Hindi श्री राम का जन्म अयोघ्या मे हुआ था उनका पिता राजा दशरथ थे और उनकी माता कौशल्या थी उनकी दो माता सुमित्रा और कैकई सुमित्रा के लक्षमण सत्रूघ्न और कैकई से भरत थे जो कि राम  सबसे ज्यादा बडा का महत्ब देते थे भरत को राम अपने महल मे रहते थे और उन्की पत्नी भी 

1.श्री राम जी को वंवाश किसने भेजा
2.श्री! राम वंवाश जा रहे थे तो सबसे ज्यादा दुखी कोन थे
3.श्री! राम कितने दिन बन वाश रहे
4.बनवाश मे राम के साथ क्या क्या हुआ 
1.श्री राम जी को वंवाश किसने भेजा


जब राजा दशरथ युघ्य कर रहज थे तब उनके रथ के रथी मारा गया तब उन्हे कैकई एक औरत उनके रथ को सम्भाला कैकई से राजा दशरथ काफि खुश थे और उनसे सादी कर लिए अयोघ्या का महारानी बन गये कैकई का पुत्र भरत थे कैकई अपने बेटे को राज पाठ देना चाहती थी ईस लिए एक दिन जब राजा दशरथ और उनकी पत्नी कैकई अपने कक्ष मे गय राजा दशरथ ने कैकई से कहा महारानी मै तुम से बहुत खुश हूँ। तुम जो चाहो वो मांगो कैकई के  राजा दशरथ जुवान दे दिए कैकई ने कहा महाराज मै जो भी मांगुगा वो आप देंगे राजा दशरथ हाँ तुम जो मांगोगी वो मै दुंगा कैकई महारानी बोले कि मूझे तीन बर्दान चाहिए़ राजा दशरथ बोले ठिक है मांगीए 


कैकई दो बर्दान मांगे राजा दशरथ से?Kaikeyi asked for two gifts from King Dasharatha
1.राम को 14 साल का बनवाश 
2.भरत को राज पाठ


1.राम को 14 साल का बनवाश काल?14 years of exile for Ram


जब राम जि बनवाश जा रहे थे तो सारे अयोघ्या नगरी दुखी थे राम के साथ सिता माता लक्ष्मन जी भी बनवाश गये बनवाश जाने के बाद बहुत सारे राछत मारे गंए राम ने बहुत सारे रिशी मुनी से ग्यान लिए उसके बाद उनहो ने बन मे एक कुटिया का निरमान कराया और कुटीया मे रहने लगे तब  रावण की बहन शूर्पणखा का श्राप भी बना उसकी मृत्यु का कारण कहा जाता है कि विद्युतजिव्ह राजा कालकेय का सेनापति था। रावण हर राज्य को जीतकर अपने राज्य में मिलाना चाहता था, इस कारण रावण ने कालकेय के राज्य पर चढ़ाई कर दी थी। कालकेय का वध करने के बाद रावण ने विद्युतजिव्ह का भी वध कर दिया राजा बली ही एक ऐसा मात्र महा पुरूश थे जो की रावन को अपने कांख मे दवा कर 6 महिने तक पुरे पृथ्वी घुमे तब जाकर रावन ने राजा बली से माफी मांगी तब जाकर बली ने रावन को छोडा  


सिता हरण? Sita haran


जब राम लक्ष्मन सिता अपने कुटिया मे बिसराम कर रहे थे तब रावन अपने मामू के साथ लेकर राम के कुटिया बन मे पहुंचा और रावन अपने मामू को  हिरन का रूप लेने को कहा हिरन का रुप घारण करने के पहचात उसने अपने सिंघ को सोने का सिंघ बना लिया सिता उन्हे देखा तो को मन लगा कि ईसे हम पक्डकर अयोघ्या ले जाएंगे सिता राम जी से उस हिरण को पक्डकर लाने को कहा राम ने लक्ष्मन को आदेश दिया कि जब तक मै स्वय लोटकर नही आते तब तुम अपने सिता माँ को छोड कर कही नही जाना राम उस हिरण को मारने को गये राम बन से बहुत दुर चले गये तब जाकर उस हिरण को मारे उस समय राक्षत अपने रूप मे आ गया और चिला चिला कर कहने लगा बचाव लक्ष्मण चिला कर कहने लगा सिता उस अबाज को सून कर लक्ष्मण से कहे तुम्हारे भईया किसी खतरे मे है। लक्ष्मण बोले नहि भईया पर कोई खतरा आई नही सकती सिता माँ गुसे मे आकर बोले लाव तुम अपना घनुष बाण मुझे देदो मूझे स्वय अपने स्वामी कि रक्षा करने आता है लक्ष्मण बोले ठिक है मै जा रहा हूँ। लक्ष्मण आपने तिर से कुटिया के पास एक रेखा पार कर कहा कि अगर ईस रेखा के अनदर कोई भी आने कि कोसिस करेगा उसी समय जल कर भस्म हो जायेगा लक्ष्मण चले गये रावन ने चुपके से आकर क्षल से सिता हरण कर लिया 

हनुमान v राम मिलण?Hanuman v Ram Milan


 इसी तरह भरत की प्रेम भक्ति, हनुमान की स्वामीभक्ति प्रभु अवतार के उद्देश्य पूर्ण में सहायक हुए। लेकिन अन्य शक्तियाँ तभी सहायक होती हैं जब अवतार स्वयं कष्ट उठाने व परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने को तत्पर होता है। इसीलिये मित्रों मन से जय श्री राम बोलते हुए उन जैसे गुणों को आत्मसात करने की कोशिश करनी चाहिये जिससे बैर, ईर्ष्या, क्रोध आदी का नाश हो और हमारी अच्छी शक्तियाँ हमारे जीवन का उद्देश्य पूर्ण करने में हमारी सहायक हों।


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