प्रकृतिक के तिन गूण.रजगुण.सतगुण.तमगुण?
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प्रकृतिक के तिन गूण /रजगुण.सतगुण.तमगुण
श्रीमद भगवदगीता?
प्रकृति के तीन गुण सतगुण.रजगुण.तमगुण की परिभाषा
प्रकृति क्या हे ? प्र = विशेष और कृति = किया गया।
प्रकृतिक के तिन गूण /रजगुण.सतगुण.तमगुण
प्रकृतिक से उत्पन्न हुए हैं तथा नाशावान है
(प्रमाण) गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित क्षी शिव महापुरुष जिसके सम्पादक है हनूमान प्रसाद पो. सं ११० अघ्याय ९ रूद संहित ईस प्रकार विष्णु तथा शिव तिनो देवताः मे गुण है परन्तु शिव महाकाल गुणातीतः कहा गया है
गिताप्रैस गोरखपुर प्रकाशिक देवी भगत पूराण जिसके सम्पादक हनुमान प्रसाद चिमन लाल गोस्वामी भगवान विष्णु ने दुर्गा कि स्तृति कि कहा कि मै( विष्णु) तुम्हारी कृपा से विघमान है
हमारा तो आशीर्वाद तथा तिरोभाव होती है हम नित्य नहीं है तुम हि नित्य हो जगत जननी हो प्रकृतिक और सनातनी देवी भगवानः शंकर ने कहा यदी भगवान बरमभा तथा भगवान तुमही से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने बाला मैं तमोगुणी लिला करने बाला शौकर क्या तुम्हारा संतान नहीं हुआ मुझे भी उत्पन्न करने बाली तुम्ही हो
ईस संसार में तुम्हारे गुण सदा सर्वदा है ईन्ही तिनो गुनो से उत्पन्न हम बरम्भा विष्णु शंकर नियामानुसार कार्य में तत्पर रहते हैं
प्रभाव से जन्मवान है नित्य नहीं है हम अविनाशी नहीं है फिर अन्य दुसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकता है तुम ही अविनाशी हो हम सर्व कि जननी उत्पन्न करने वाली माता हो प्रकृतिक तथा सनातनी हो
भगवान शंकर बोले हे माता यदि हमारे उपर आप दयायुक्त हो तो मुझे तमो गुण क्यो बनाया कमल से उत्पन्न बर्मभा को रजो गुण किस लिए बनाया तथा
विष्णु के सत गुण क्यो बनाया जीवो के जन्म मृत्यु रुषी दुष्कर्म मे क्यो लगाया
अपने पति काल भगवान के सदा भोग विलाश करती रहती हो आपकी गती कोई नहीं जानता
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