सुखी जिवन का रहस्य  अगर आप ईस सबाल का जबाब चाहते है। तो आपको ईसे पढना चाहिये जिवन बहुत लम्बा होता अगर उसके सत्य को स्वीकार लीया जाए जिवन क्षन भर मे बित जाता है।  ईस पोस्ट को पढ कर ईसका महत्ब समझ मे आ जायगा आपको पता चलेगा कि जिवन का  अमुल्य ग्याण भी कभी कभी छोट से साघारण ईंसान से मिल जाता है। कभी कभी छोटे मुलाकात भी जिवन को बदल देता है। ग्याण होकर भी हमे कुछ पता नही चलता  सुखी जिवन का रहस्य एक महान सांत हुआ करते थे जो स्वय का आक्षम बनना चाहते थे जिसके लिय वो कई लोगो से मुलाकात करते थे एक जगह से दुसरे जगह जाना पडता था ईसी यात्रा के दोरान एक कन्या बिदुषी से हुई विदूषी ने उनका स्वागत किया और संत से कुछ समय रूक कर आराम करने का आगरा किया संत उनके मिठे बोल बिचार से रूकने का निर्नय लिया  विदुषि ने अपने हाथो का स्वादिस्ट भोजन कराया और उनके अराम करने का बेबस्ता किया खटियाँ पर दरी बिछाया और अपने जमिन पर चटाई बिछा कर शो गई विदुषी को सोते हि निंद आ गईऋ

सुखी जिवन का रहस्य?

 सुखी जिवन का रहस्य?



अगर आप ईस सबाल का जबाब चाहते है। तो आपको ईसे पढना चाहिये जिवन बहुत लम्बा होता अगर उसके सत्य को स्वीकार लीया जाए जिवन क्षन भर मे बित जाता है।  ईस पोस्ट को पढ कर ईसका महत्ब समझ मे आ जायगा आपको पता चलेगा कि जिवन का  अमुल्य ग्याण भी कभी कभी छोट से साघारण ईंसान से मिल जाता है। कभी कभी छोटे मुलाकात भी जिवन को बदल देता है। ग्याण होकर भी हमे कुछ पता नही चलता 




सुखी जिवन का रहस्य



एक महान सांत हुआ करते थे जो स्वय का आक्षम बनना चाहते थे जिसके लिय वो कई लोगो से मुलाकात करते थे एक जगह से दुसरे जगह जाना पडता था ईसी यात्रा के दोरान एक कन्या बिदुषी से हुई विदूषी ने उनका स्वागत किया और संत से कुछ समय रूक कर आराम करने का आगरा किया संत उनके मिठे बोल बिचार से रूकने का निर्नय लिया 




विदुषि ने अपने हाथो का स्वादिस्ट भोजन कराया और उनके अराम करने का बेबस्ता किया खटियाँ पर दरी बिछाया और अपने जमिन पर चटाई बिछा कर शो गई विदुषी को सोते हि निंद आ गई  बिदुषी का चेहरे से पता चल रहा था कि वो सुखि चयन का निंद ले रही है। उघर सांत को खाट पर निंद नही आ रही  थी सांत को गदे पर सोने का आदत था वो रात भर विदुषी को देख रहे थे कि वो जमिन पर कैसे सो रही है।



 Sukhi jeevan ka rahsya



जब सवेरा हुआ तो संत ने विदुषी से पुछा तुम कैसे ईस कठोर घरा पर सो रही थी तब उन्हो ने सरलता से उतर दिया हे- गुरु देव मेरे लिए ये छोटी सि कुटिया एक महल के समान है। ईसमे मे क्षम का महक है। अगर मुछे एक समय भी भोजन मिलता है तो मै अपने आप को भग्यसाली मानता हुँ। जब दिन भर मै काम कर ईस घारा मे सोती हूँ। तो मुझे लगता है मै अपने माँ कि गोद मे शो रहा हु़। और मुझे अहशास भी नही होता कि मै ईस कठोर जमिन पर शोता हु़ँ। 





शिक्षा : 




आत्म शांती एव संतोष ही सुखी जिवन का रहस्य है। जो इंसान को संतोष नही मिलता वो इस दुनिया के मोह माया मे फशा रहता है। और उसे कभी सुख चयन नही मिलता 



जिवन का सुख संतोष है अगर मनुष्य किहा जो भी है उसी को स्वीकार कर अपने जिवन को अच्छे से जिने लगे सुखी से रहने लगे तो उसी क्षन सुख का अनुभव कर लेता जिश तरह विदुषी अपने एक समय भोजन को ही भग्यशाली मानती है और कठोर घारा पर चैन का निन लेती है उसी तरह उसे जिवन मे सूखी का अनुभव हुआ है वही एक संत होते हुए भी उसे खाट पर सही से निंद नही आ रही क्यो कि उसके पाश जो भी है उससे संतुशट नही था 


यह कथा सुखी जिवन का रहस्य कहलाती है। आज घर मे अपार घन दौलत होते हुय भी सुखी नही है क्यो कि उसके पास जो भी है। उससे संतुश्ट नही है 


अत" संतुष्टि ही जिवन का मुल मंत्र है अगर ईंसान मे संतोष नही तो कोई सुख उसे तोड नही सकता 




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